Kumar Vishwas Poem collections
Friday, 4 December 2015
Thursday, 3 December 2015
कुमार विश्वास का सुहाग रात, प्रथम मिलन की रात पर लिखा गया एक मधुर प्रेम गीत।
क्या अजब रात थी, क्या गज़ब रात थी
दंश सहते रहे, मुस्कुराते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
मन मे अपराध की, एक शंका लिए
कुछ क्रियाये हमें जब हवन सी लगीं
एक दूजे की साँसों मैं घुलती हुई
बोलियाँ भी हमें, जब भजन सी लगीं
कोई भी बात हमने न की रात-भर
प्यार की धुन कोई गुनगुनाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
पूर्णिमा की अनघ चांदनी सा बदन
मेरे आगोश मे यूं पिघलता रहा
चूड़ियों से भरे हाथ लिपटे रहे
सुर्ख होठों से झरना सा झरता रहा
इक नशा सा अजब छा गया था की हम
खुद को खोते रहे तुमको पाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
आहटों से बहुत दूर पीपल तले
वेग के व्याकरण पायलों ने गढ़े
साम-गीतों की आरोह - अवरोह में
मौन के चुम्बनी- सूक्त हमने पढ़े
सौंपकर उन अंधेरों को सब प्रश्न हम
इक अनोखी दीवाली मनाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे||
Main tumhe dhundhne swarg ke dwar tak...
Main tumhe dhundhne swarg ke dwar tak,
roj jaata raha, roj aata raha.
Tum gazal ban gayi ban gayi,
geet me dhal gayi,
Manch se main tumhe gungunata raha.
Zindagi ke sabhi raste ek the,
sabki manzil tumhare chayan tak rahi.
aprakashit rahe peer ke upnishad,
man ki gopan kathayein nayan tak rahi,
Praan ke pristh par preet ki vartani
tum mitati rahi, mai banata raha
Main tumhe dhundhne swarg ke dwar tak,
roj jaata raha, roj aata raha.
Tum gazal ban gayi ban gayi, geet me dhal gayi,
Manch se mai tumhe gungunata raha.
Ek khamosh halchal bani zindagi,
gehra thehra hua jal bani zindagi,
tum bina jaise mehlon me beeta hua
urmila ka koi pal bani zindagi.
drishti akaash me aas ka ek diya
tum bujhaati rahi mai jalaata raha.
Main tumhe dhundhne swarg ke dwar tak..
Tum chalito gayi, mann akela hua,
saari sughiyon ka pur jor Mela raha,
jab bhi laati nayi, khushbu o main saji,
mann bhi bela hua, tan bhi bela hua..
Vyarth ki baat par, khud ki aaghat par,
Ruthati tum rahi main manaata raha
Main tumhe dhundhne swarg ke dwar tak,
roj jaata raha, roj aata raha.
Tum gazal ban gayi ban gayi,
geet me dhal gayi,
Manch se main tumhe gungunata raha.
Main tumhe dhundhne swarg ke dwar tak..!!
मांग की सिंदूर रेखा , तुमसे ये पूछेगी कल
मांग की सिंदूर रेखा ,
तुमसे ये पूछेगी कल,
यूँ मुझे सर पर सजाने
का तुम्हे अधिकार क्या है ,
तुम कहोगी वो समर्पण
बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था,
तो कहो फिर प्यार क्या है …..
मांग की सिंदूर रेखा
कल कोई अल्हड अयाना
बांवरा झोका पवन का,
जब तुम्हारे इंगितो पर
गंध भर देगा चमन में ,
या कोई चंदा धरा का
रूप का मारा बेचारा,
कल्पना के तार से
नक्षत्र जड़ देगा गगन पर..
तब यही बिछुए महावर
चूड़ियाँ गजरे कहेंगे,
इस अमर सौभाग्य के
श्रृंगार का आधार क्या है ..
मांग की सिन्दूर रेखा …
कल कोई दिनकर विजय का ,
सेहरा सर पर सजाये ,
जब तुम्हारी शप्तबरणी ,
छावं में सोने चलेगा ,
या कोई हरा थका
व्याकुल सिपाही जब तुम्हारे ,
बक्ष पर धर सीश लेकर
हिचकियाँ रोने चलेगा ,
तब किसी तन पर कसी दो
बांह जुड़ कर पूछ लेगी,
इस प्रणय जीवन समर में
जीत क्या है हार क्या है …
मांग की सिन्दूर रेखा
-- Dr. Kumar Vishwas
Wednesday, 2 December 2015
mehfil-mehfil muskana to padta hai
khud hi khud ko samjhana to padta hai
unki aankho se hokar dil jana.
raste me ye maikhana to padta hai..
सब अपने दिल के राजा है
भले प्रकाशित हो ना हो, पर सबकी कोई कहानी है।।
बहुत सरल है कहना, किसने कितना दर्द सहा।
जिसकी जितनी आँख हँसी है, उतनी पीर पुरानी है।।