Wednesday, 2 December 2015

बस्ती बस्ती घोर उदासी

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है

जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
कतरा कतरा सागर तक तो,जाती है हर उमर मगर
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है

इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, मैं भी हूँ और तू भी है
आसमान से गिरा परिंदा, मैं भी हूँ और तू भी है
छूट गयी रास्ते में जीने – मरने की सारी कसमें
अपने अपने हाल में जिंदा, मैं भी हूँ और तू भी है

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