Wednesday 2 December 2015

मेरा अपना तजुर्बा है

मेरा अपना तजुर्बा है तुम्‍हें बतला रहा हूं मैं
कोई लब छू गया था तब कि अबतक गा रहा हूं मैं
फिराक ए यार में कैसे जिया जाए बिना तड़पे
जो मैं खुद ही नहीं समझा वही समझा रहा हूं मैं

कोई कब तक महज़ सोचे कोई कब तक महज़ गाये
इलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाये
मेरा महताब उसकी रात के आग़ोश में पिघले
मैं उसकी नींद में जागूं वो मुझमे घुल के सो जाये

मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा
मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इलज़ाम आएगा
मेरी धड़कन में जो तू हो तो फिर अपराध क्या मेरा
अगर राधा पुकारेगी, तो फिर घनश्याम आएगा

गिरेबा चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है
हर इक पल मुस्कुराकर, अश्क पीना और मुश्किल है
किसी की बेवफाई ने हमें इतना सिखाया हैं
किसी के इश्क में मरने से पीना और मुश्किल है

1 comment:

  1. Bhai correct spelling likha kre please bahut spelling mistakes hai thank you 🙏

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